प्रधानमंत्री नरिंदर मोदी द्वारा गुरु गोबिंद सिंह (सिंघ) जी के छोटे साहिबज़ादों की शहादत को नमन करते हुए हर साल 26 दिसम्बर को जो 'वीर बाल दिवस' मनाने का ऐलान किया है, उसके पीछे उनकी जितनी मर्ज़ी ईमानदार भावना काम कर रही हो लेकिन अमित शाह का ये ट्वीट स्पष्ट कर रहा है कि सरकार के लिए साहिबज़ादों की शहादत का क्या अर्थ है. अमित शाह ने साहिबज़ादों की शहादत को जैसे बग़ैर कुछ सोचे समझे राष्ट्र औऱ राष्ट्र भक्ति से जोड़ दिया है, वो न तो सिख इतिहास के नज़रिए से ठीक है औऱ न ही सिख सिद्धान्तों के अनुरूप है.
इस का एक बड़ा कारण ये है कि साहिबज़ादों की शहादत किसी राष्ट्र विशेष के लिए दी गई कुर्बानी न थी, क्योंकि न तो तब राष्ट्र की कोई आज जैसी संकल्पना काम कर रही थी औऱ न ही भारत आपने राष्ट्रीय स्वरूप में तब उस स्थिति में था जो आज हमें दिखाई दे रहा है या दिखाया जा रहा है. राष्ट्र की वर्तमान संकल्पना- जिस में देशभक्ति की बजाए धर्मिक औऱ नस्ली संकीर्णता ज़्यादा महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है, उस के साथ साहिबज़ादों का कोई लेना देना नहीं था.
दूसरी बड़ी बात, सिख सिद्धान्तों में जियोग्राफिकल बाउंड्रीज़ को देश या राष्ट्र मानने का कोई विधान काम नहीं करता. बल्कि इसमें तो- ਸਭੁ ਕੋ ਮੀਤੁ ਹਮ ਆਪਨ ਕੀਨਾ... अर्थात हर क्षेत्र, हर धर्म, हर नस्ल आदि के लोग हमारे मित्र है (पापियों को छोड़कर) की अवधारणा पाई जाती है, तो जब राष्ट्र जैसा कुछ है ही नहीं तो कहाँ की राष्ट्रभक्ति? औऱ किस राष्ट्र सेवा की प्रेरणा? वैसे भी भाजपा औऱ उस के संगी साथी जिस राष्ट्र औऱ राष्ट्र सेवा का नाम इस्तेमाल कर रहे हैं, उसके बारे में हम सब जानते हैं कि वो कौन सा राष्ट्र है औऱ कैसे राष्ट्र को ये लोग चाहते हैं. इसलिए जैसा राष्ट्र भाजपा का आदर्श है, उस के साथ साहिबज़ादों का कोई संबंध नहीं है.
बेशक़ ये एक अच्छी पहल है कि सरकार की तरफ़ से साहिबज़ादों के नाम से एक दिन विशेष समर्पित किया जा रहा है, लेकिन इस के पीछे की मंशा को बारीकी से समझने की ज़रूरत है. उसकी कई परतें हैं, जिस में से एक ये है कि वो साहिबज़ादों के नाम का इस्तेमाल आपनी राजनीतिक इच्छा की पूर्ति के लिए करने हेतु एक तरह से मज़बूर है. दूसरा सिखों की भाजपा (संघ परिवार) के साथ बढ़ रही नाराज़गी को भी वो इसी बहाने थोड़ा कम करने की कोशिश में है. हालांकि उनकी ये कोशिश सिखों को समझने की कोशिश के रूप में सामने नहीं आती, बल्कि उनको अपना ही एक अंग बताने की कोशिश के रूप में प्रगट होती है, फ़िर भी बहुत से लोगों को इस में सिखों के लिए सरकार के मन में इज्ज़त, प्रशंशा औऱ साथ जैसी बातें दिखाई दे जाएंगी, इस बात में भी कोई शक्क नहीं है.
लेकिन जो भी हो, सिख इस बात को तब तक स्वीकृति नहीं देंगे जब तक सरकार आपने इस ऐलान में पूरी तरह से ईमानदार नहीं होती. अग़र वाकई भाजपा ये मानती है कि भारत में साहिबज़ादों के नाम पे एक दिन हो औऱ उस दिन हम सब मिलकर एक साथ उनको याद करें तो इस के लिए उसको न सिर्फ़ साहिबज़ादों के हवाले से आपनी राजनीतिक इच्छाओं की पूर्ति हेतु की जाने वाली कोशिश को बंद करना पड़ेगा, बल्कि उनकी शहादत के असल अर्थों को भी समझने के लिए आगे बढ़ाना होगा.
इस के बग़ैर सरकार का ये कदम बेईमाना ही साबत होगा औऱ अमित शाह इस के लिए एक ज़रूरी कारण उपलब्ध करवाते
Parminder singh shonkey (writer)
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